अगर आप इंसान हैं और आप में इंसानियत जिंदा है तो इसे जरूर पढ़ें
आज दिल बैठ गया, ऐसा लग रहा है कि मैं अपने आप को इतना सामर्थवान नहीं बना सका कि दूसरे की मदद कर सकूं
आज पहली बार अपने आप को कोस रहा हूं
वो बेबसी का चेहरा मेरी आंखों के सामने से हट ही नहीं रहा
हुआ यूं कि जब मैं ढाबा पर खाना खा रहा था, वहां पर एक माल ढोने वाला स्कूटर गाड़ी रुकी और उसके साथ एक इंसान – मैं इंसान इसलिए बोल रहा हूं कि वह गरीब होते हुए भी अदब से पेश आ रहा था
मेरा खाना लगभग खत्म हो चुका था, ढाबा वाले भैया से जान पहचान और व्यवहार अच्छा होने के कारण मैं वहां रुक कर कुछ बातें कर रहा था
वो इंसान बहुत ही शालीनता से आकर पूछा
शब्जी है क्या?
जवाब में “हां” मिला
उन्होंने ₹10 का शब्जी मांगा, आज भी जिनके पास पैसे की कमी रहती है वो रोटी तो बना लेते हैं शब्जी कहीं बाहर जाकर खरीद लेते हैं
ढाबे वाले भैया ने बैठने के लिए कहा और फिर शब्जी निकाल कर दे दी
एक बात कहना चाहूंगा कि एक गरीब ही गरीब की मदद करता है, अमीर तो समय और पैसा को इंसानियत से ऊपर समझते हैं
वह अपने ठेला गाड़ी से रोटी निकालकर लाए
केवल रोटी की मजबूरी में पहले ही समझ चुका था
वह चुपचाप खाने बैठ गए हैं और खाना शुरू किया
तभी ढाबे वाले भैया ने कहा यह बिहार के हैं, मेरी हमदर्दी और बढ़ गई
मैंने पूछा, भैया आप कहां से हैं?
वे बोले – सीतामढ़ी से, मैंने बोला भैया मैं गया जी से हूं
यह सुनकर उनके चेहरे पर थोड़ी सी रंगत आई, क्योंकि उनके चेहरे का भाव बदला हुआ सा लगा
मैं कुछ बोलने लायक नहीं था, मेरे दिमाग में बहुत सारे प्रश्न एक साथ चलने लगा और मुझे यह भी लगा कि ना जाने कितने लोग इस धरती पर इस तरह मजबूरी के साथ जीवन जी रहे हैं और कोई उनके तरफ देखने को तैयार नहीं है
मैं इसमें उस इंसान की विफलता नहीं मानता
मैं इसके लिए सरकार और समाज के लोग की विफलता मानता, क्योंकि इसी समाज के लोग ने ऐसी सरकार चुनी है जो आजादी के 70 साल के बाद भी गरीबी नहीं मिटा सका
मुझे सिर्फ उनके बिहारी होने के कारण दुख नहीं हो रहा था, क्योंकि हर एक प्रांत में लोग बदहाली की जीवन जी रहे और कोई सहारा नहीं मिल रहा है
कोई अपने घर से हज़ार किलोमीटर दूर अपना जीवन मजदूरी करके चला रहा है
मैं इसमें राज्य सरकार की पूर्ण रूपेण विफलता मानता हूं, और कठोर शब्दों में निंदा करता हूं कि उनका प्रयास इस क्षेत्र में बिल्कुल शुन्य रहा है
अपने राज्य में अगर इन्हें काम मिल जाता है तो इतना दूर आने की जरूरत नहीं पड़ती और इतना कष्ट भी उठाना नहीं पड़ता, यह सत्ता लोभी शासन करने वाले लोग कोई काम नहीं कर रहे है
वे चुपचाप अपनी रोटी खत्म किए
मुझे बहुत ही ज्यादा दया आ रही थी, मैंने ढाबे वाले भैया से कहा कि और भी कुछ लेना हो तो पूछ ले
उन्होंने पूछा तो वह “नहीं” बोले
बे सिर्फ गरीब नहीं थे, गरीबी के साथ वह खुद्दारी को भी अपने सीने में जगाये हुए थे
वह सिर्फ अपने हक़ के पैसे का ही खाना उचित समझा इसलिए शायद दोबारा कुछ भी नहीं लिया
खाना खाने के बाद वह जाने लगे
अब जो मैं देखने वाला था उससे मेरी आंखों में आंसू आ गया
उसके स्कूटर गाड़ी खराब थी, उसको ठेला गाड़ी के रूप में काम में ले रहे थे
शायद पैसे की मजबूरी रही होगी तभी वह बना नहीं रहे होंगे
मुझे उनकी बेबसी पर तरस आ रहा था, जब ऐसी चीजें देखने को मिलता है तो कभी कभी ईश्वर के अस्तित्व पर भी सवाल करने लगता हूं
इतनी असमानता इसी धरती पर क्यों?
वे बेचारे उस गाड़ी को खींचते हुए ले जा रहे थे
सच बात बता रहा हूं वह सिर्फ अपनी गाड़ी को नहीं खींच रहे थे, साथ में सरकार की नाकामी धोते हुए जा रहे थे
मेरी आंखें नम थी
मुझसे रहा नहीं गया मैंने उनका मदद करना उचित समझा, मैंने उनका पीछा किया और मेरे पास उस समय जितना भी था उन्हें देकर अपने मन को शांत किया
खुलकर बोलता हूं कि मैं इतना सामर्थवान नहीं था कि उनकी यह दशा सुधार सकूं पर मुझे अफसोस जरूर है कि मैं अभी यह कर नहीं सका
अंत में जरूर कहना चाहूंगा कि हम जिस जगह पर हैं, जैसी भी स्थिति में है, जितना हो सके, अन्य लोगों की मदद करते जाएं
हिंद की जय तभी होगी |
आपका अपना
अभय रंजन
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