जिंदगी को समझना है तो जरूर पढ़े, इसको पढ़े बिना आपकी ज़िंदगी बेकार है |
नमस्कार दोस्तो ! आज समझते है “जिंदगी” का अर्थ और उसकी कहानी – मेरी जुबानी |
बचपन से लेकर आज तक हम सब को जिंदगी की कई परिभाषा बताई गई – चाहे वह बड़े बुजुर्गों के द्वारा हो, चाहे वह फिल्मों के गीत के द्वारा, फिर चाहे वह महान हस्तियों के अनुभवों के उदाहरण के द्वारा, या फिर हमारे आदरणीय शिक्षकों के द्वारा या फिर अगर आजकल के तौर तरीकों को देखते हुए, जिस पर हम सबसे ज्यादा विश्वास करते हैं “गूगल बाबा” के द्वारा |
इन तमाम लोगों के द्वारा हमें जिंदगी की परिभाषा समझाई जाती है लेकिन एक बात स्पस्त बता दू – दुनिया का कोई शिक्षक, कोई अनुभवी आदमी या कोई गूगल आपको जिंदगी की परिभाषा नहीं दे सकता है या इसको नहीं समझा सकता जब तक आप खुद ही समझने का प्रयास नहीं करते |
मैं यह लेख लिखने से पहले एक छोटा सा प्रयास किया, मैंने “गूगल” पर जिंदगी क्या है? या अंग्रेजी में कहें तो What is Life? को जानने की कोशिश की |
टाइप करने के बाद जो परिणाम मेरे सामने आया, वह मुझे पूरी तरह चौंका दिया, क्योंकि हिंदी में लिखने पर सबसे ऊपर वीडियो आया और अंग्रेजी में लिखा तो सबसे ऊपर डिक्शनरी के माध्यम से समझाया गया दिखा और बाद में विकिपीडिया का पेज दिखा |
खैर गूगल तो एक प्रोग्रामिंग पर काम करता है तो उसके परिणाम पर इस तरह का संवेदनशील विषय के जवाब को सत्यता प्रमाणित करना बिल्कुल बेवकूफी होगा |
लेकिन मेरे इस 2 मिनट एक छोटी सी अध्ययन पर एक बहुत कमाल कि लाइन दिखा, लिखा हुआ था –
“व्यक्ति, पशु और पौधों की जीवित अवस्था”
मैं जो ढूंढ रहा था या जो समझाना चाह रहा था इस लेख के माध्यम से वह मुझे मिल चुका था |

विस्तार से बात करता हूं –
जिंदगी मतलब जीवित – मतलब शरीर – मतलब दिमाग – मतलब चिंतन – मतलब सोचने और समझने की शक्ति
अगर मैं कहूं कि यह मेरी जिंदगी है तो ऊपर लिखे सारी बातें मुझ में निहित होनी चाहिए,
लेकिन जरा गौर फरमाइए –
क्या आप इस परिभाषा को सुनने के बाद मुझे बता सकते हैं कि अपनी जिंदगी को आप वाकई में खुद ही जी रहे हैं ?
मुझे मालूम है अगर दिल पर हाथ रख कर जवाब दोगे तो आपका जवाब “ना” ही होगा |
लोग जिंदगी माफ करना “अपनी जिंदगी” को समझ ही नहीं पा रहे हैं, लोग आज दूसरे की बातें, गतिविधियां या हस्तक्षेप से इतना प्रभावित हो रहे हैं कि वह खुद की जिंदगी तो जी ही नहीं रहे हैं |
लोग क्या कहेंगे ?
यह तो छोटा काम है इसको करने से मैं बुरा दिखूंगा ?
फालना के यहां तो यह कभी नहीं देखा मैं इसको कैसे कर दूं ?
ऐसे तमाम पास प्रश्न आज हमारे अस्तित्व को ऐसे घेर के बैठा हुआ है कि आज हम उससे बाहर निकल नहीं पा रहे हैं और सच बताऊं तो सारी परेशानियों का जड़ यही है |
जब जिंदगी का अर्थ ही “जीवित” है तो हम क्यों मुर्दे की तरह जी रहे है ?
जो दिल कहता है वह करो क्यों दूसरे की बात से डर के रुक जाते हो |
याद रखो जिंदगी उसी को सगा मानती है जो उसे अपनाता है, जिंदगी को सही से जीने के लिए एक सही मायने काफी होता है लेकिन दिक्कत बस इतनी है कि हम अपनी पूरी जिंदगी इसी बात को सोचकर निराश होते रहते हैं जो हमें कभी हासिल नहीं हो पाया |

एक छोटा सा बदलाब लाए – जीवन का कोई एक लक्ष्य बनाओ और उसके पीछे लग जाओ, देखो बीच के सारी दीवारें कैसे खुद-ब-खुद किनारा पकड़ लेता है |
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