राजस्थान चुनाव का विश्लेषण 2014
क्यों जनता ने बीजेपी को नाकारा और कांग्रेस को सराहा
नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम अभय रंजन है और आज मैं इस पोस्ट के द्वारा राजस्थान चुनाव का विश्लेषण जनता के नजरिए से करने जा रहा हूं !
सबसे पहले यह स्पष्ट कर दूं कि मेरा किसी भी व्यक्ति विशेष या राजनीतिक दल से कोई साझा नहीं है और यह पोस्ट किसी के दबाव या समर्थन के लिए नहीं लिखा जा रहा है यह बस यहां की जनता की सोच का प्रारूप है |
( यह मेरी व्यक्तिगत सोच भी हो सकती है)
जैसा कि पूरे भारतवर्ष को पता चल गया है कि राजस्थान के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और यहां कांग्रेस ने बहुमत लाकर अपनी सरकार बनाने की ओर अग्रसर है, वहीं बीजेपी को दूसरी तरफ हार का सामना करना पड़ा |
भारतवर्ष में चुनाव अब आम आदमी की तरह आम नहीं रहा, यह पूरी तरीके से पर्व की तरह मनाया जा रहा है |
जिस तरह पर्व आने पर लोग जोर-शोर से तैयारियां करते हैं, अपनी क्षमता से अधिक खर्च करते हैं, ठीक उसी तरह चुनाव में भी कुछ इस तरह से आजकल देखा जा रहा है |
हालांकि अभी तक इस विषय पर पूरे भारत में कोई गंभीर रूप से बात नहीं कर रहा है |अभी तक हम लोग चुनाव में होने वाले खर्चे की पारदर्शिता सामने लाने में सफल नहीं हो पाए हैं |
भारत के लोकतंत्र की एक और कमाल कि बात है, हमारे यहां चपरासी से लेकर आईएस तक की तो परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है, काबिलियत साबित करना पड़ता है लेकिन चुनाव लड़ने के लिए आपका कुछ भी होना मायने नहीं रखता है |
खैर इस विषय पर अगर जो बात करूं तो बहुत समय लग जाएगा, अभी तो मुद्दा कुछ और है, अभी तो मैं राजस्थान चुनाव और उसके नतीजे पर बात करता हूं |
इस बार के चुनाव में यह तो साफ तौर से देखने को मिला है कि सभी पार्टियां ने अपना पूरा दमखम चुनाव में लगाया, सब अपने-अपने तरीके से जन संपर्क करने की कोशिश की, लोगों के बीच अपनी चुनावी मुद्दे को ले जाने की कोशिश की, तथा हर संभव प्रयास किया कि वह अपने मतदाताओं से समर्थन में वोट दिलवा सकें |
लेकिन अंतर हर एक के प्रयास में हुआ तभी नतीजा हार या जीत में दिखाई दिया |
इस चुनाव के नतीजे ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि जनता अब समझदार हो गया है वह अब अंधा वोटिंग नहीं कर रहा है, वोट देने से पहले कम से कम एक बार तो वो विकास का विकल्प अवश्य सोच रहा है और उन्हीं को वोट देने का प्रयास कर रहा है जो उसके हित में काम करने को तैयार हो |
और जहां तक मैं समझता हूं यह एक सराहनीय प्रयास है और यह देश को अलग मुकाम पर ले जाने के लिए नीव की ईट साबित हो सकती है, अगर हमें बेहतर भारत चाहिए तो हमें आज के राजनीतिक दल और उनके प्रतिनिधियों से स्पष्ट सवाल पूछना शुरू करना चाहिए |
राजस्थान में इस बार बीजेपी जाति, धर्म, संप्रदाय, जात-पात से ऊपर उठ ना सकी और ठीक उसके विपरीत कांग्रेस ने विकास की भावना, महंगाई, रोजगार, किसानों की समस्या को बखूबी पिरोया |
पूरे राजस्थान में लगभग 75% मतदान हुई और वोट देने में सबसे ज्यादा युवा की संख्या थी जो तकरीबन 60% के आसपास थी, कहीं ना कहीं युवाओं तक अपनी बात पहुंचाने में बीजेपी नाकाम रही और वही कांग्रेस ने मौजूदा सरकार के प्रति अनवन को अच्छे तरीके से चुनाव में इस्तेमाल किया |
आज के दौर के युवा आपके दिन का एक तिहाई भाग सोशल मीडिया में गुजारते हैं, वैसे तो दोनों पार्टी सोशल मीडिया पर सक्रिय थे लेकिन कहीं ना कहीं बात और मुद्दा उठाने में कांग्रेस सोशल मीडिया पर ज्यादा सफल दिखाई पड़ी जो कि इस ऐतिहासिक जीत का एक बड़ा कारण माना जा सकता है |
एक बात और तय हो गई की जनता अब वही पुरानी ‘राम मंदिर’, ‘भारत माता की जय’, ‘किसी खास व्यक्ति की जाति-गोत्र’ पर राजनीति करने वाले में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, वॉटर इन से कहीं ऊपर विकास की मुद्दा को ज्यादा प्राथमिकता दिया |
इस जीत को मैं पूरी तरह से जनता की जीत मानता हूं क्योंकि राजस्थान की जनता ने बेहतर विकल्प तलाशने की उम्मीद में वोट दिया था |
राजस्थान के अलावा बाकी के 4 राज्य में भी इस तरह का प्रभाव देखने को मिला |
अब 2019 का मामला काफी दिलचस्प बन गया है, जहां एक दो साल पहले पूरी तरह से लोग यह मान रहे थे कि यही सरकार आगे भी जारी रहेगी, वहीं यह पांच राज्यों के चुनावी नतीजे सोचने पर मजबूर करेगी |
मेरा तो बस यही कहना है कि जो जनता के हित में सोचें, काम करे, वही चुनकर बार बार आए, चाहे वह किसी भी पार्टी से संबंध रखता हो |
और जनता को भी पार्टी, व्यक्ति-विशेष, जात-पात, धर्म, समुदाय से ऊपर उठकर वोट करना चाहिए तभी एक बेहतर भारत की कल्पना की जा सकती है |
आशा करता हूं कि मेरा यह पोस्ट आपको न्याय पूर्ण लगा होगा, आपके स्वतंत्र विचार का स्वागत करता हूं |
जय हिंद